Friday 10 July 2020

गै़र-इस्लामी रस्में और जहेज़ की लानत

इस्लाम आया इसलिए था कि लोगों के ऊपर लदे बोझ हलके करे।
क़ुरआन मजीद में फ़रमाया गया-
‘‘और (हमारा यह नबी) लोगों पर से वे बोझ उतारता है जो उन पर लदे हुए थे और उन बन्दिशों को खोलता है जिनमें वे जकड़े हुए थे।’ (क़ुरआन, सूरा-3 आले-इमरान, आयत-157)

इस्लाम ने निकाह को आसान किया, लेकिन हमने इसे मुश्किल बना लिया। अपने ऊपर वे बोझ लाद लिए जिनको उतारने के लिए इस्लाम आया था। उन बन्दिशों में हमने अपने आपको जकड़ लिया है जिनसे आज़ाद कराने के लिए इस्लाम आया था। अब हमारे यहाँ शादियों पर इतना ख़र्च होता है कि जिस शादी को इस्लाम ने इबादत, अज्रो-सवाब और रहमत क़रार दिया था अब वह अज़ाब और एक सोशल फ़ंकशन बन कर रह गई है। जिस शादी के बारे में नबी-ए-रहमत (सल्ल0) ने फ़रमाया था कि बेहतरीन शादी वह है जिसमें कम-से-कम ख़र्च हो। अब हमारे यहाँ वही शादी बेजा ख़र्चों की अलामत बन चुकी है।

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