रिश्ते की तलाश में
हसब-नसब और ख़ानदान-बिरादरी को तरजीह दी जाती है। उसके बाद रंग-रूप और ख़ूबसूरती
को। तीसरे माल-दौलत
को। उसके बाद तालीमी डिग्रियाँ और समाजी हैसियत
देखी जाती है। इन बातों में तरतीब कुछ ऊपर नीचे हो जाती है लेकिन आम तौर से रिश्ते
इन्ही चार बुनियादों पर तलाश किए जाते हैं। इस्लाम ने रिश्ते तलाश करने का जो मेयार बताया है अगर उस उसूल पर रिश्ते की तलाश हो तो ख़ानदान मुस्तहकम और मज़बूत होगा। प्यारे नबी (सल्ल0) ने फ़रमाया-
‘‘औरत का निकाह चार बातों को सामने रखकर किया जाता है। औरत की दौलत, उसके हसब-नसब, उसके हुस्नो-जमाल और उसकी दीनदारी। तो तुम दीनदार ख़ातून को मुन्तख़ब करो, तुम्हारे दोनों हाथ तर रहेंगे।’’ (यानी इस दुनिया में तुम्हारे ख़ानदान मज़बूत रहेंगे और आख़िरत में नजात का ज़रिआ।) (हदीसः बुख़ारी 4700)एक दूसरी हदीस का मफ़हूम है कि आप (सल्ल0) ने ताकीद व तंबीह फ़रमाई कि जब तुम्हारे पास कोई ऐसा शख़्स शादी का पैग़ाम लाए जो तुम्हारी नज़र में दीनदार और अच्छे अख़लाक़ व किरदार का हो तो उससे शादी करो। अगर ऐसा न करोगे तो मुस्लिम समाज फितना व फ़साद में मुबतला हो जाएगा। (हदीसः तिरमिज़ी 1084)
जब रिश्ता तय हो जाता है तो अब समाजी रस्मों की शुरूआत होती है। सगाई और गोद-भराई वग़ैरा की रस्में निभाई जाती हैं। जबकि प्यारे
नबी (सल्ल0) की हदीस के मुताबिक़ रिश्ता मिलते ही फ़ौरन निकाह कर
देना चाहिए। (निकाह की बरकत और जहेज़ की लानत से)
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