Friday 10 July 2020

निकाह रहमत न की जहमत

निकाह अल्लाह तबारक व ताला का हुकुम हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत और इंसान की अहमतरीन जरूरत है। दोनों इस्लाम में इंसानी मआशरे  को महफूज और पाक बनाने के लिए निकाह का बेहतरीन आसान और सादा तरीका इंसान को अता फरमाया है

अल्लाह क़ुरआन में फरमाता है

तुम में जो बे-जोड़े के हों और तुम्हारे ग़ुलामों और तुम्हारी लौंडियों मे जो नेक और योग्य हों, उन का निकाह कर दो। अगर वह गरीब होंगे तो अल्लाह अपने फ़ज़ल से उन्हें गनी कर देगा। अल्लाह बड़ी वुसअत वाला और अलीम है    (सूरह नूर आयात 32)

आखिर निकाह के लिए कार्ड छपवाने की क्या जरूरत है क्या मस्जिद में  एलान काफी नहीं है?

 लेकिन आज अक्सर मुसलमानों ने निकाह को एक बवाल मुसीबत और तिजारत बना दिया है और निकाह के पाकीजा चश्मे में गंदी रसूमात की ग़लाज़त को डाल दिया है।  चुनांचे आज हर तरफ बेहयाई के वह दिल  सोज  मंजर नजर आ रहे हैं जिन्हें देखकर जानवर भी शर्म महसूस करते होंगे। मालूम नहीं कितनी बच्चियां शादी के इंतजार में बूढ़ी हो रही है और इनकी पाक़ीज़ा आंखें घरों के सुकून को बर्बाद कर रही है। मालूम नहीं कितने नौजवान खूबसूरत और पाक़ीज़ा बंधन के इंतजार में गलत और बेहया मआशरे के हाथों अपना बहुत कुछ गवा बैठे हैं। मालूम नहीं कितने वाल्दैन अपने बच्चे अपनी बच्चियों को नौजवान होता देखकर रातों को रोते हैं या मस्जिदों में भीख मांगने के लिए हाथ फैलाते हैं यह सब खुली आंखों से देखने और सुबह शाम झेलने के बावजूद कोई यह नहीं सोचता

आखिर भारी-भरकम जहेज़ ही को निकाह की सर्त क्यों  करार दे दिया गया है क्या पाक दामन मुसलमान बच्ची बगैर जहेज़ के किसी घर को आबाद नहीं कर सकती।

अगर इसतताअत  नहीं है तो फिर भारी भरकम वालीमे  की क्या जरूरत है क्या हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने सिर्फ एक बकरी और बाज औकात मेहमानों के अपने घरों से लाए हुए खाने से वलीमा नहीं फरमाया?

लड़की के घर लड़के वालों का पूरा मेला लगा कर जाने और वहां खाना खाने की क्या जरूरत है क्या सुन्नत के मुताबिक लड़की का वालिद खुद अपनी बच्ची को दूल्हा के घर नहीं पहुंचा सकता?


क्या हमारी रिश्तेदारीयां इतनी कमजोर हैं की अगर शादी के मौके पर कर्ज लेकर पूरी बिरादरी का पेट ना भरा जाए तो रिश्तेदारियां खतरे में पड़ जाती हैं क्या रिश्तेदारियां रहमत हैं या वबाल?

शादी के मौके पर तमाम रिश्तेदारों का जमा होना दूरदराज इलाकों से आना आखिर क्यों जरूरी है क्या इसके बगैर निकाह  नहीं हो सकता?

क्या इसके बगैर खुशी हासिल नहीं की जा सकती? क्या इन मावाके  के इलावा रिश्तेदार एक दूसरे से नहीं मिल सकते?

काश! मुसलमान इन उमूर पर गौर करें तो इन्हें बहुत सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाए और सिनेमा, दवा खाना और सड़कों पर दरिंदों की तरह आंखें फाड़ कर देखने वाले कितने नौजवान सुकून की जिंदगी गुजारने लगते।  लेकिन आज तो पूरा माहौल ही बदल चुका है जहेज़ के सांप ने लाखों जवानों को निगल लिया है और रिश्तेदारों की नाक ने लाखों बच्चियों के मुस्तकबिल को तारीक  कर दिया है इन हालात में अगर निकाह के असल मफहूम को समझने की कोशिश की जाए और लोगों को बताया जाए कि-

बेहतरीन निकाह वह होता है जिसमें खर्च कम किया गया हो।

और हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अपने मजलिस में बैठे-बैठे गरीब सहाबा का निकाह करा देते थे और वहीं से रुखसती भी हो जाती थी।

और बाज सहाबाएकराम ने अपने निकाह की इत्तेला  हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तक को नहीं दी।

 और हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम सहाबाएकराम और ताबईन का माहौल था कि लड़की को उसके वालिद या भाई खुद दूल्हा के घर छोड़ आते थे। 

हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के जमाने में निकाह 2 रकात नमाज पढ़ने की तरह आसान था और इसके लिए महीनों पहले तैयारी और महीनों बाद तक कर्जे की मुसीबत नहीं झेलनी पड़ती थी।

 तो यह सारी बातें सुनकर अक्सर लोग मानने के बजाय यह जवाब देते हैं

आप लोग कोई नया इस्लाम लाए हैं हम तो बड़ों से यही कुछ देखते आए हैं।

बड़े-बड़े ओल्मा भी तो बड़ी शान ओ शौकत के साथ अपने बच्चों और बच्चियों की शादी करते हैं क्या आप लोगों के पास इनसे ज्यादा इल्म  है? हम अगर आपकी बात मान ले तो सारी जिंदगी बिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे।

आप खुद गौर फरमाइए की मज़कूरा बाला बातें वाकई उज्र हैं  या महज  बहाने।  हकीकत यह है कि आज गरीब घरानों की हालत को करीब से देखा जाए तो दिल फटता है और अंदर से आवाज आती है कि यह बातें सिर्फ और सिर्फ शैतानी बहाने हैं जिनमें फंस कर मुसलमान खुद को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं।

 या अल्लाह तू ही हम पर रहम फरमा और हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की उम्मत को दीन की समझ अता फरमा। 

आज हमने अगर अपनी बच्चियों को गलत रसूमात की वजह से घर बिठाया और हिम्मत करके इनका घर नहीं बसाया तो इनमे से बहुत सारी बच्चियां एन जी ओ के मक्कर व फरेब का शिकार हो जाएंगी और बहुत सारी अपनी रोजी-रोटी कमाने की फ़िक्र  में अपनी घरेलू जिंदगी बर्बाद कर बैठेंगे और बहुत सारी उन राहों पर चल निकलेगी जहां उनको देखना एक मुसलमान के बस की बात नहीं है जबकि बहुत सारी अंदर ही अंदर घुट कर तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो जाएंगी।

ऐ मुसलमानों अल्लाह ताला गवाह है की निकाह के लिए जेवरात, जहेज़  और बारात नाम की मुसीबत, आलीशान मकानों और रिश्तेदारों की इज्तेमात की कोई जरूरत नहीं है।  बल्कि आज के दर्दनाक हालत को देखते हुए तो ऐसा महसूस होता है कि निकाह के बहुत सारे मुबाह इख़राजात भी बंद कर देनी चाहिए ताकि हमारा मआशरा गरीबों के साँस  लेने के काबिल भी बन सके।

  मुसलमानों क्या आप अपने बच्चों को फिल्म, कलर टीवी, बेहयाई से भरे लिटरेचर और तरह-तरह की बीमारियां देने के बजाय एक पाक दामन, बाहाया बीवी नहीं दे सकते?

ऐ मुसलमानों क्या आप अपनी प्यारी बच्चियों को गंदे अखबार उरियाँ फिल्में और मर्दो के दरमियान नौकरियां देने की बजाय उसे एक शरीफ और मजबूत शहर नहीं दे सकते?

सोचिए! खुद्दार थोड़ा सा सोचिए! कि आज बुराइयां किस तरह से घरों पर दस्तक दे रही है अगर आप में हिम्मत है तो फिर अपने बच्चों और बच्चियों के तकिये  के नीचे रखे हुए नावेल और मोबइल पर एक नजर डालिए कि कितना खतरनाक जहर इस नई नस्ल के दिलों में उड़ेला जा रहा है।

या अल्लाह! हमारे नौजवान भाई और बहन कहां जाएं इनके बड़े बगैर बारात, जेवर, दहेज और दावतो के उन्हें शादी के मुकद्दस बंधन में नहीं जोड़ते जबकि ईमान फरामोश लोग गंदे नावेल गंदी वेबसाइट और गलीज़  फिल्म के जरिए इनके ईमान पर डाका मार रहे हैं।

इस पूरे कैंसर का इलाज तो इस्लामी हुकूमत ही कर सकती है अलबत्ता फिलहाल हमारे लिए जरूरी है कि हम-

सूरत हाल की संगीनी का जायजा लें।

जहां तक मुमकिन हो सके निकाह के मामले को आसान और सादा बनाएं और हम में से जो साहिबे हैसियत लोग हैं इस सिलसिले में पहले ऐलान करें।

और हर नौजवान खुल कर यह ऐलान करें कि मैं हरगिज़ हरगिज़  दहेज नहीं लूंगा बल्कि खुद कमाकर बीवी का जरूरी सामान पूरा करूंगा।

और रिश्तेदार ताने देने के बजाय ताउन का तर्ज इख़्तेयार करें जब इंशा अल्लाह हमें आसमान से बरकते उतरती हुई नजर आएंगी।

अल्लाह ताला तमाम मुसलमानों को दीन की सही समझ अता फरमाए और दीन पर चलना आसान फरमाए!

आमीन!

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