Friday 31 July 2020

Khutba Hajjatul Wida

मैदान अर्फ़ात में अल्लाह तआला के आख़िरी नबी, नबी रहमत सय्यदना मुहम्मद रसूल अल्लाहﷺ ने9 ज़ीलहिजा ,10 हिज्री को आख़िरी ख़ुतबा हज दिया था आईए इस ख़ुत्बे के अहम निकात को दोहरा लें, क्योंकि हमारे नबीﷺ ने कहा था, मेरी इन बातों को दूसरों तक पहुंचाएं हज़रत मुहम्मद रसूल अल्लाहﷺ ने फ़रमाया।




1- ए लोगो सुनो, मुझे नहीं लगता कि अगले साल में तुम्हारे दरमयान मौजूद हूँ गा मेरी बातों को बहुत ग़ौर से सुनो, और उनको उन लोगों तक पहुँचाओ जो यहां नहीं पहुंच सके
2- ए लोगो जिस तरह ये आज का दिन, ये महीना और ये जगह इज़्ज़त-ओ-हुर्मत वाले हैं बिलकुल इसी तरह दूसरे मुस्लमानों की ज़िंदगी, इज़्ज़त और माल हुर्मत वाले हैं (तुम उस को छेड़ नहीं सकते )
3- लोगो के माल और अमानतें उनको वापिस करो
4- किसी को तंग न करो, किसी का नुक़्सान न करो ताकि तुम भी महफ़ूज़ रहो
5- याद रखो, तुमको अल्लाह से मिलना है, और अल्लाह तुमसे तुम्हारे आमाल की बाबत सवाल करेगा
6- अल्लाह ने सूद को ख़त्म कर दिया, इसलिए आज से सारा सूद ख़त्म कर दो (माफ़ करदो )
7- तुम औरतों पर हक़ रखते हो, और वो तुम पर हक़ रखती हैं जब वो अपने हुक़ूक़ पूरे कर रही हैं तुम उनकी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करो
8- औरतों के बारे में नरमी का रवैय्या क़ायम रखो , क्योंकि वो तुम्हारी शराकतदार (पार्टनर) बेलौस ख़िदमत गुज़ार रहती हैं
9- कभी ज़ना के क़रीब भी मत जाना
10 ए लोगो मेरी बात ग़ौर से सुनो, सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो, पाँच फ़र्ज़ नमाज़ें पूरी रखो , रमज़ान के रोज़े रखो , और ज़कात अदा करते रहो अगर इस्तिताअत हो तो हज करो
11 ज़बान की बुनियाद पर रंग नसल की बुनियाद पर , हसब-ओ-नसब की बुनियाद पर तास्सुब में मत पड़ जाना काले को गोरे पर और गोरे को काले पर अरबी को अजमी पर और अजमी को अरबी पर कोई फ़ौक़ियत हासिल नहीं हर मुस्लमान दूसरे मुस्लमान का भाई है। तुम सब अल्लाह की नज़र में बराबर हो बरतरी सिर्फ़ तक़्वे की वजह से है
12 याद रखो तुम एक दिन अल्लाह के सामने अपने आमाल की जवाबदेही के लिए हाज़िर होना है, ख़बरदार रहो मेरे बाद गुमराह ना हो जाना
13 याद रखना मेरे बाद कोई नबी नहीं आने वाला , ना कोई नया दीन लाया जाएगा मेरी बातें अच्छी तरह से समझ लो
14 मैं तुम्हारे लिए दो चीज़ें छोड़ के जा रहा हूँ, क़ुरआन और मेरी सुन्नत, अगर तुमने उनकी पैरवी की तो कभी गुमराह नहीं होगे
15 सुनो तुम लोग जो मौजूद हो, इस बात को अगले लोगों तक पहुंचाना और वो फिर अगले लोगों को पहुंचाएं और ये मुम्किन है कि बाद वाले मेरी बात को पहले वालों से ज़्यादा बेहतर समझ और अमल कर सकें
फिर आपने आसमान की तरफ़ चेहरा उठाया और कहा
ऐ अल्लाह गवाह रहना, मैंने तेरा पैग़ाम तेरे लोगों तक पहुंचा दिया
या अल्लाह हम सबको इस पर अमल करने वाला बना दे। आमीन

Friday 10 July 2020

COVID-19 और मुस्लिम समाज

एक वाइरस (जो हमे नज़र भी नहीं आती) इंसानों को घर के अंदर कैद होने पर मजबूर कर दिया है। जानते हैं ऐसा क्यों है? क्यौकि इंसान इसके भयानक मंजर को अपने आँखों के सामने देख रहा है। ये वह वाइरस है जो इंसानों को तबाह कर रहा है इस जैसे कितने ही वाइरस हमारे दिलो दिमाग़ में रचे बसे हैं जो इंसानों को तो नहीं बल्कि उनके अन्दार के इंसानियत (अख़्लाक़) को खोखला करते जा रहा है लेकिन हमें इसका एहसास तक नहीं होता, जानते हैं क्यौं? क्योंकि इसका परिणाम करोना जैसे महामारी की तरह फौरन नहीं आता है लेकिन है यह उससे ज्यादा घातक है, क्योंकि यह इंसानियत को धीरे-धीर अंदर से खोखला कर देता है।
आप समझ गये होंगे मै किस वाइरस की बात कर रहा हूँ! जी हाँ, ये वह कोरोना है जो हमारे अंदर बुग्ज़, हसद, कीना, घमण्ड, चुगुलखोरी, एक-दूसरे पर लान-तान, आपसी सहयोग से बेपरवाह, भाई-भाई में नाइत्तेफाक़ी हमारे अंदर इस तरह से समा गया है कि वह बड़े-बड़े से आजमाइश आने के बावजूद हमारे दिला नहीं बदलते। कुरान में कहा गया है ‘‘तुम्हारे दिल सख़्त हो गये पस वे पत्थर की तरह हो गये या उससे भी ज्यादा सख़्त, पत्थरों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिनसे नहरें फूट निकती हैं, कुछ पत्थर फट जाते हैं और उनसे पानी निकल आता है और कुछ पत्थर ऐसे भी होते हैं जो अल्लाह के डर से गिर पड़ते हैं (कुरआन 274) आह! हमें क्या हो गया? हमारे दिल अभी तक क्यों नहीं लरज़ गये? और अगर हमारे इतने बेअसर हो चुकें हैं तो हम एक दिल के लिये दुआ क्यों नहीं करते जो हमें बदल दे। हमें इस तेज रफतार से चलती हुइ जिंदगी में ब्रेक लगाकर सोचना चाहिए कि हम किधर जा रहे हैं।
इस वबा नें लोगों को बिल्कुल फ्रि कर दिया है लोग यह कह रहे हैं अब क्या करें उन्हें कुछ समझ नहीं आता। लेकिन इसी में अल्लाह के कुछ नेक बंदे भी हैं जो अपनी जान और माल के साथ इस मैदान कूद चुके है। उनलोगों पर अल्लाह की रहमतें नाज़िल हों, वह एक दूसरे की मदद कर रहे हैं जाहिर सी बात है जब इंसान खुशहाली में अल्लाह को याद करता है, उसके बताये हुए तरीके पर चलता है और लोंगों की खिदमत अंजाम देता है, नेक़ी की तरफ बुलाता है और बुराई से रोकता है तो ऐसे वक्त में भी अल्लाह ताला अपने उन्हीं बंदों से काम लेता है और उनके दरजों को और ज्यादा बुलन्द कर देता है।
जो लोग यह कह रहे हैं हम क्या करें? कुछ काम नहीं है बैठे-बैठे ऊब जाते हैं मैं उन से कहना चाहता हूँ। कुरान रमज़ान के महीने में नाजिल हुआ है और हम अब इस मुक़द्दस महीने में दाखिल होने ही वाले हैं तो सबसे पहले हमें अपना एहतेसाब करना चाहिए।
ऐहतेसाब कैसे करेंः- हमने अब तक जो ज़िन्दगी़ गुज़ारी है उसमें कितना नमाज़ और रोज़े छोड़े हैं, कितने लोगों की हक़तल्फी हुई है, किनसे हमारा अनबन है, गुस्सा, घमण्ड, ऐब निकालना, झूठ बोलना वगैरह अपने तमाम कोताहियों का लिस्ट बना लेना चाहिये।
प्लानः- जब हमें अपने कोताहियों के बारे में जान लें तो उसके बाद प्लान करें कि यह हमारे अंदर से कैसे दूर होगा। इसके लिए सबसे पहले हमें कुरआन को समझ कर पढ़ने की जरूरत है हम कुरआन को उसके तरजूमें के साथ पढ़ें रोजाना एक पारा ताकि रमज़ान तक तरजुमा कुरआन मुकम्मल हो सके। जरूरी नही कि हम अकेले पढ़ें बल्कि एक आदमी पढ़े और घर के तमाम अफराद सुनें और जो बातें समझ में न आये उसे आलिम से पूछ लिया जाये। अब कुरआन का इल्म आजाने के बाद उसीके मुताबिक अपनी बाक़ी जिन्दग़ी गुज़ारें।
दुआः अखिर में अल्लाह तआला से रातों में खूब दुआ करें और अपनी गलतियों पर नादिम हों, अगर किसी की हक़तलफी हुई है तो उसे अदा करें, यही तौबा का तरीका़ है वरना आप कितना भी ज़िक्र व अज़कार करें तौबा कुबूल नहीं होता!
अगर हम ऐसा करने में क़ामयाब हो गये तो यक़ीन जानिये अल्लाह ताला की मदद हमारे साथ होगी और अगर हम इसके लिये तैयार नहीं हैं तो आगे इससे भी बड़ी आजमाइश के लिये तैयार रहें।
आखिर में एक सामाजिक मसले पर कुछ बात कहना चाहता हूं। हम जानते हैं कि इस्लाम में निक़ाह बहुत आसान है लेकिन आज के वक़्त में अगर माँ-बाप के लिये जो मुश्किल घड़ी है तो वह है बच्चों के शादी!
जानते हैं ऐसा क्यों? क्यौंकि की हमने अल्लाह तआला के किताब से अपना रूख मोड़ लिया है, किताब के कुछ हिस्सों पर ईमान लाते हैं कुछ को छोड़ देते हैं। आप गौर कीजिए आज जो सूरतेहाल है शादी-ब्याह के मामले में दीन को तर्क करने की वजह से, क्या शरीअत के मुताबिक निक़ाह करने से भी यही सूरतेहाल होता? क्या इसी तरह से बिन ब्याही बहने और बेटियां अपने घरों में माँ-बाप पर बोझ बनी रहती? यह बेटियां तो रहमत हैं फिर बोझ क्यौं? क्योंकि हमने कुरआन के कुछ हिस्से पर अमल करते हैं और कुछ हिस्से को छोड़ देते हैं।
आखि़र में, मैं बस यही कहना चाहता हुं की इस फुर्सत की घड़ी में हमारे सामने वह बरकत व रहमत वाला रमजान का महीना आने वाला है आप एक बार कुरआन को इस जज़्बे से पढ़ें कि हमें इस पर अमल करना है अभी हम इस लिए भी पूरे के पूरे दीन में दाखि़ल नहीं हो पाते क्योंकि हमने अभी तक कुरआन को समझने की गरज से पढ़ा ही नहीं है।

अल्लाह ताआला से दुआ है कि जो बातें लिखी गई हैं उसपर हमें और आपको भी अमल की तौफीक़ अता फरमाये। और हम सबके गलतियों को माफ फरमाये।


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