Monday 19 July 2021

Saturday 17 October 2020

Naik Biwi: Behtareen Mataa!

 

 
✨ नेक बीवी : बेहतरीन मताअ ✨
🔹 हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया:
 
✨ दुनिया मताअ है और इस दुनिया का बेहतरीन मताअ नेक और सालेह बीवी है।
 
📚 बाहवाला
◆सहीह मुस्लिम 3649
◆मिश्कात उल मसाबीह 3083
◆सुनन नसाई 3234
 
✒ लफ्ज़ ‘मताअ‘ के मायने पूँजी, बरतने(इस्तेमाल) की चीज, या फ़ायदेमंद चीज के होते है।
◆ इस लिहाज से नबी सल्ल. ने इस दुनिया की सारी पूँजी और फायदेमंद चीजों से बढ़कर एक नेक बीवी को बेहतरीन मताअ करार दिया है।

Friday 25 September 2020

Jahez_Ka_Len_Den_No_Dowry

 

जहेज़ का लेन-देन: Jahez Ka Len-Den
डाक्टर मुहम्मद रज़ी उल-इस्लाम नदवी
वह: मौलाना साहिब मौजूदा दौर में जहेज़ देने और लेने के मुताल्लिक़ आपका क्या ख़्याल है?
मैं: देना मजबूरी हो सकती है , लेना कौन सी मजबूरी? मैंने अपने लड़के की शादी की , कोई जहेज़ नहीं लिया , लड़के को मोटर साईकल और बहू को जे़वरात , डबल बैड , सिंघार दान और दूसरी चीज़ें ख़ुद ख़रीद कर दिया मेरी अहलिया ने अपनी भतीजी की शादी की , जो हो सका दिया , लेकिन लड़के वालों ने कोई मुतालिबा नहीं किया
वह: "जो हो सका , दिया मतलब , दे सकते हैं? मेरी छोटी बहन के कई रिश्ते आए , हमने जहेज़ देने से इनकार किया तो बात आगे ना बढ़ सकी _अल्हम्दुलिल्ला हमारे भाईयों की शादी भी ऐसे ही हुई है , बग़ैर किसी लेन-देन के । अपनी बहनों का निकाह भी इसी तरह करने का इरादा है । अब्बू डटे हुए हैं कहते हैं " हम जहेज़ में कुछ नहीं देंगे
मैं: जहेज़ को विरासत के साथ जोड़ कर देखना चाहिए विरासत में लड़कीयों का हिस्सा है क़ुरआन-ए-मजीद में उनके हिस्सों की सराहत की गई है लड़की एक हो या एक से ज़ाइद , कोई ऐसी सूरत नहीं जिसमें उनको हिस्सा ना मिले अगर लड़कीयों को विरासत में हिस्सा दिया जाने लगे तो उन्हें जहेज़ से महरूमी का एहसास ना होगा ये सूरत तो सख़्त नापसंदीदा है कि उन्हें ना जहेज़ में कुछ दिया जाये और ना विरासत में उनका हिस्सा लगाया जाये
वह: हमारे यहां जमात के अक्सर अफ़राद ने अपनी बच्चीयों को जहेज़ दिया । हमसे भी कहते हैं देना पड़ता है , जब कि हम उस के सख़्त ख़िलाफ़ हैं
मैं: प्रैक्टीकल बनना चाहिए समाज बहुत गंदा है मुस्लमानों की अक्सरीयत बहुत लालची है लड़कीयों की शादी में कुछ देने में हर्ज नहीं जो लड़के वाले सराहतन या इशारतन जहेज़ मांगते हैं , में उन्हें बहुत बेशरम और बेग़ैरत समझता हूँ
वह: तो अब अगर अगला रिश्ता आए तो हम जहेज़ दे सकते हैं?
मैं: बिलकुल!
वह: जी बेहतर है
मैं: लेकिन इस का ये मतलब नहीं कि मैं जहेज़ का लेन-देन पसंद करता हूँ मैं चाहता हूँ कि लड़कीयों की शादी किसी तरह जल्द हो और समाज में जो मस्नूई रुकावटें खड़ी कर दी गई हैं उनको किसी तरह पार किया जाये
वह: मौलाना साहिब वो जहेज़ वाली हदीस कौन सी है?
मैं: जहेज़ के बारे में कोई हदीस नहीं अरबी ज़बान में 'जहेज़ के लिए कोई लफ़्ज़ ही नहीं है
वह: कहा जाता है कि अल्लाह के रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम ने अपनी बेटी हज़रत फ़ातिमा रज़ी अल्लाह अनहा को जहेज़ दिया था
मैं: बिलकुल ग़लत बात हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ी0 बचपन से अल्लाह के रसूल सल्ल0 के साथ रहते थे हिजरत-ए-मदीना के बाद जब आपने फ़ातिमा का उनसे निकाह करना चाहा तो उनसे दरयाफ़त किया " तुम्हारे पास कुछ है? इन्होंने जवाब दिया : आप तो जानते हैं , मेरे पास कुछ नहीं हाँ , एक ज़िरह है _ आपने फ़रमाया "इसी को फ़रोख़त कर लाओ _ इस से जो रक़म हासिल हुई इसी से आपने महर दिलवाया और घर गृहस्ती का कुछ सामान खरीदवाया दूसरे अलफ़ाज़ में कहा जा सकता है कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने अपनी बेटी फ़ातिमा के निकाह के मौक़ा पर जो कुछ उन्हें दिया था वो उनके होने वाले शौहर अली बिन अबी तालिब ही की रक़म से था
वह: जज़ाकल्लाह खैरुन , मौलाना साहिब बहुत शुक्रिय
Jahez kaa len-den
Dr Muhmmd Razi Ul-Islaam Nadvi
Wah: Maulaanaa saahib maujudaa daur men jhez dena aur lene ke mutaallik aapkaa kyaa khaal hai?
Main: Dena mjburi ho skti hai , lena kaun si mjburi? maine apne ladke ki shaadi ki , koee jhez nhin liyaa , ladke ko motr saaeekel aur bahu ko jeevraat , doubl baid , singhaar daan aur dusri chijeen khrid kr diyaa meri Ahliyaa ne apni bhtiji ki shaadi ki , jo ho skaa diyaa , lekin ladke vaalon ne koee mutaalibaa nhin kiya.
Wah: "jo ho skaa , diyaa matlb , de skte hain? Meri chhoti bahen ke kaee rishte , hamne jhez dene se inkaar kiyaa to baat aagae naa badh saki Alhmdulillaa hmaare bhaaeeyon ki shaadi bhi aise hi huee hai , bagair kisi len-den ke . apni behnon kaa nikaah bhi isi tareh krne kaa iraadaa hai . Abbu date hue hain kehte hain " ham jahez men kuchh nhin dengae"
Main: Jahez ko VIRASAT ke saath jod kr dekhnaa chaahye Viraast men ladkiyon kaa hissaa hai Quran-e-Majeed men unke hisson ki saraahat ki gaee hai ladki ek ho yaa ek se zaaid , koe aisi surt nhin jismen unko hissaa naa milagar ladkiyon ko Viraast men hissaa diyaa jaane lgae to unhen jhez se mahrumi kaa ehsaas naa hogaaa ye surt to sakht naapasandidaa hai ki unhen naa jahez men kuchh diyaa jaaye aur naa hi viraast men unkaa hissaa lagaaayaa jaaye
Wah: hmaare yhaan jamaat k aksr afraad ne apni bachchiyon ko jahez diyaa . hmse bhi khte hain dena padtaa hai , jab ki hm us ke skhet khilaaf hain
Main: Practical bannaa chaahie smaaj bahut gandaa hai Muslmaanon ki aksriyat bahut laalchi hai ladkiyon ki shaadi men kuchh dene men haraj nhin jo ldke vaale sraahtn yaa ishaartn jhez maangate hain, men unhen bhut beshrm aur bairt smjhtaa hun
Wah: to ab agar agalaa rishtaa aae to hm jahez de sakte hain?
Main: Bilkul!
Wah: G behtr hai
Main: Lekin is kaa ye matlb nhin ki main jahez kaa len-den pasand krtaa hun main chaahtaa hun ki ladkiyon ki Shaadi kisi tarh jald ho aur samaaj men jo msnuee rukaavten khadi kar di gaee hain unko kisi tarh paar kiyaa jaaye
Wah: maulaanaa saahib vo jhez vaali hdis kaun si hai?
Main: Jahez ke baare men koee hdis nhin arbi zbaan men 'jhez ke lie koee Lafz hi nhin hai
Wah: kahaa jaataa hai ki Allaah ke Rasul S.A.W. ne apni beti hzrt Fatima Rzi ko jahez diyaa thaa
Main: Bilkul galat baat hzrt Ali Bin Abi Taalib Rzi. bachpan se Allaah ke Rasul S.A.W. ke saath rahte the Hijrt-e-Madina ke baad jb aapne Fatima ka unse Nikaah krna chaahaa to unse dryaaft kiyaa " tumhaare paas kuchh hai? inhonne jawaab diyaa : aap to jaante hain , mere paas kuchh nhin haan , ek zirah hai _ aapne frmaayaa "isi ko frokhet kr laao _ is se jo rakem haasil huee isi se apne mehar dilvaayaa aur ghar girhasti kaa kuchh saamaan khridvaayaa dusre lafaazon men kaha jaa sktaa hai ki Allaah ke Rsul S.A.W. ne apni beti faatimaa ke nikaah ke maukaa pr jo kuchh unhen diyaa thaa vo unke hone vaale shauhr Ali bin Abi Taalib R. hi ki rakem se thaa
Wah: jzaakllaah khairun , maulaanaa saahib bhut shukriyaa
جہیز کا لین دین
ڈاکٹر محمد رضی الاسلام ندوی
وہ : مولانا صاحب ! موجودہ دور میں جہیز دینے اور لینے کے متعلق آپ کا کیا خیال ہے؟
میں : دینا مجبوری ہوسکتی ہے ، لینا کون سی مجبوری؟ میں نے اپنے لڑکے کی شادی کی ، کوئی جہیز نہیں لیا ، لڑکے کو موٹر سائیکل اور بہو کو زیورات ، ڈبل بیڈ ، سنگھاردان اور دوسری چیزیں خود خرید کردیں _ میری اہلیہ نے اپنی بھتیجی کی شادی کی ، جو ہوسکا دیا ، لیکن لڑکے والوں نے کوئی مطالبہ نہیں کیا _
وہ : "جو ہوسکا ، دیا" مطلب ، دے سکتے ہیں؟ میری چھوٹی بہن کے کئی رشتے آئے ، ہم نے جہیز دینے سے انکار کیا تو بات آگے نہ بڑھ سکی _الحمدللہ ہمارے بھائیوں کی شادی بھی ایسے ہی ہوئی ہے ، بغیر کسی لین دین کے ۔ اپنی بہنوں کا نکاح بھی اسی طرح کرنے کا ارادہ ہے ۔ ابو ڈٹے ہوئے ہیں _ کہتے ہیں : " ہم جہیز میں کچھ نہیں دیں گے _"
میں : جہیز کو وراثت کے ساتھ جوڑ کر دیکھنا چاہیے _ وراثت میں لڑکیوں کا حصہ ہے _ قرآن مجید میں ان کے حصوں کی صراحت کی گئی ہے _ لڑکی ایک ہو یا ایک سے زائد ، کوئی ایسی صورت نہیں جس میں ان کو حصہ نہ ملے _ اگر لڑکیوں کو وراثت میں حصہ دیا جانے لگے تو انہیں جہیز سے محرومی کا احساس نہ ہوگا _ یہ صورت تو سخت ناپسندیدہ ہے کہ انہیں نہ جہیز میں کچھ دیا جائے اور نہ وراثت میں ان کا حصہ لگایا جائے _
وہ : ہمارے یہاں جماعت کے اکثر افراد نے اپنی بچیوں کو جہیز دیا ۔ ہم سے بھی کہتے ہیں : دینا پڑتا ہے ، جب کہ ہم اس کے سخت خلاف ہیں _
میں : پریکٹیکل بننا چاہیے _ سماج بہت گندا ہے _ مسلمانوں کی اکثریت بہت لالچی ہے _ لڑکیوں کی شادی میں کچھ دینے میں حرج نہیں _ جو لڑکے والے صراحتاً یا اشارتاً جہیز مانگتے ہیں ، میں انہیں بہت بے شرم اور بے غیرت سمجھتا ہوں _
وہ : تو اب اگر اگلا رشتہ آئے تو ہم جہیز دے سکتے ہیں؟
میں : بالکل _
وہ : جی بہتر ہے _
میں : لیکن اس کا یہ مطلب نہیں کہ میں جہیز کا لین دین پسند کرتا ہوں _ میں چاہتا ہوں کہ لڑکیوں کی شادی کسی طرح جلد ہو اور سماج میں جو مصنوعی رکاوٹیں کھڑی کردی گئی ہیں ان کو کسی طرح پار کیا جائے _
وہ : مولانا صاحب ! وہ جہیز والی حدیث کون سی ہے؟
میں : جہیز کے بارے میں کوئی حدیث نہیں _ عربی زبان میں 'جہیز' کے لیے کوئی لفظ ہی نہیں ہے _
وہ : کہا جاتا ہے کہ اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ و سلم نے اپنی بیٹی حضرت فاطمہ رضی اللہ عنہا کو جہیز دیا تھا _
میں : بالکل غلط بات _ حضرت علی بن ابی طالب رضی اللہ عنہ بچپن سے اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ و سلم کے ساتھ رہتے تھے _ ہجرتِ مدینہ کے بعد جب آپ نے فاطمہ کا ان سے نکاح کرنا چاہا تو ان سے دریافت کیا : " تمھارے پاس کچھ ہے؟" انھوں نے جواب دیا :" آپ تو جانتے ہیں ، میرے پاس کچھ نہیں _ ہاں ، ایک زِرہ ہے _" آپ نے فرمایا : "اسی کو فروخت کرلاؤ _" اس سے جو رقم حاصل ہوئی اسی سے آپ نے مہر دلوایا اور گھر گرہستی کا کچھ سامان خریدوایا _ دوسرے الفاظ میں کہا جاسکتا ہے کہ اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ و سلم نے اپنی بیٹی فاطمہ کے نکاح کے موقع پر جو کچھ انہیں دیا تھا وہ ان کے ہونے والے شوہر علی بن ابی طالب ہی کی رقم سے تھا _
وہ : جزاک اللہ خیراً ، مولانا صاحب ! بہت شکریہ

Friday 18 September 2020

Asan Nikah ke Amali Namoone Jeyada se Jeyada Pesh karne ki Zaroorat

 

आसान निकाह के अमली नमूने _
ज़्यादा से ज़्यादा पेश करने की ज़रूरत है




डाक्टर मुहम्मद रज़ी उल-इस्लाम नदवी
आज बिरादर मुहतरम जावेद अली की बेटी का निकाह पढ़ाने का मौक़ा मिला इन्होंने तक़रीबन 3 हफ़्ता पहले से कह रखा था , दरमयान में कुछ-कुछ वक़फ़े से याद-दहानी कराते रहे जावेद साहिब मुझसे बहुत मुहब्बत करते हैं उनसे ताल्लुक़ उस वक़्त से है जब इन्होंने आज से तक़रीबन 35 बरस क़बल उदार-ए-तहक़ीक़-ओ-तसनीफ़ इस्लामी अलीगढ़ में तसनीफ़ी तर्बीयत का कोर्स किया था मेरे दिल्ली मुंतक़िल होने के बाद इस ताल्लुक़ में मज़ीद इज़ाफ़ा हुआ इन्होंने ख़ाहिश की कि मैं निकाह पढ़ाने के साथ मुख़्तसर तक़रीर भी करूँ
मैंने अपनी तक़रीर में अर्ज़ किया कि मुख़्तलिफ़ मतमद्दन समाजों में ख़ानदान की तशकील निकाह के ज़रीये होती है , लेकिन अफ़सोस कि उनमें निकाह के साथ ख़तीर मसारिफ़ वाबस्ता कर दिए गए हैं किसी शख़्स की दो तीन लड़कीयां हों तो उनकी पैदाइश के वक़्त से वो उनके निकाह के वक़्त के लिए पैसे बटोरने की फ़िक्र में लगा रहता है अफ़सोस कि इस दौड़ में मुस्लमान भी पीछे नहीं हैं अल्लाह के रसूल (सल्ल0) का तो एक वस्फ़ क़ुरआन-ए-मजीद में ये बयान किया गया है " वो लोगों से वो बोझ उतारता है जो इन्होंने ख़ुद पर लाद लिए थे और वो बेड़ियाँ और तौक़ काटता है जिनमें इन्होंने ख़ुद को जकड़ लिया था _
(अलअराफ़ 157) लेकिन अफ़सोस कि आपकी उम्मत ने अपनी मर्ज़ी से दुबारा ख़ुद को रसूम-ओ-रवायात की बेड़ियों में जकड़ लिया है और भारी बोझ अपने ऊपर लाद लिए हैं खासतौर से निकाह के मौक़ा पर मंगनी , जहेज़ , तिलक और दीगर नामों से मुसरफ़ाना रसूम की सख़्ती से पाबंदी की जाती है
मैंने अर्ज़ किया कि इस्लाम ने निकाह का हुक्म दिया है और सादा अंदाज़ में इस के इनइक़ाद की ताकीद की है अल्लाह ताला का इरशाद है " तुम में जो बग़ैर जोड़े वाले हों उनके निकाह कराओ _ ( उल-नूर 32) और अल्लाह के रसूल (सल्ल0) का इरशाद है " बेहतरीन निकाह वो है जो सहूलत से अंजाम पा जाये _ (सही इबन हबान 4072) अह्द नबवी में इस की बहुत सी रोशन मिसालें मिलती हैं कि ग़रीब से ग़रीब लड़के या लड़की का निकाह बहुत आसानी से हो गया औरत चाहे मुतल्लक़ा हो या बेवा , बहुत आसानी से इस का निकाह होजाता था एक मिसाल भी ऐसी नहीं मिलती कि किसी नौजवान या दोशीज़ा या अधेड़ उम्र के मर्द या औरत ने निकाह का इरादा किया हो और मसारिफ़ फ़राहम ना होने की वजह से इसका निकाह ना हो पाया हो
मैंने अर्ज़ किया कि इस्लाह-ए-मुआशरा और निकाह आसान बनाने के मौज़ू पर तक़रीरें होती रहती हैं , लेकिन अमल का जज़बा मफ़क़ूद होता है जो लोग तक़रीरें करते हैं और दूसरों को आसान निकाह पर उभारते हैं , वो ख़ुद अपने बेटे या बेटी के निकाह के मौक़ा पर मुसरफ़ाना रसूम से बाज़ नहीं आते आज ज़रूरत इस बात की है कि आसान निकाह के अमली नमूने ज़्यादा से ज़्यादा पेश किए जाएं , ताकि आम लोगों में उनकी नक़ल करने का जज़बा पैदा हो और मुस्लिम समाज को बेजा और ग़ैर शरई रवायात की बेड़ियों से नजात मिले
निकाह के बाद लड़के के मामूं से तआरुफ़ हुआ इन्होंने अज़खु़द बताया कि हमने इरादा किया था कि इस निकाह में हम लड़की वालों का एक पैसा भी ख़र्च नहीं होने देंगे
آسان نکاح کے عملی نمونے __
زیادہ سے زیادہ پیش کرنے کی ضرورت ہے
ڈاکٹر محمد رضی الاسلام ندوی
آج برادر محترم جاوید علی کی بیٹی کا نکاح پڑھانے کا موقع ملا _ انھوں نے تقریباً 3 ہفتہ پہلے سے کہہ رکھا تھا ، درمیان میں کچھ کچھ وقفے سے یاد دہانی کراتے رہے _ جاوید صاحب مجھ سے بہت محبت کرتے ہیں _ ان سے تعلق اس وقت سے ہے جب انھوں نے آج سے تقریباً 35 برس قبل ادارۂ تحقیق و تصنیف اسلامی علی گڑھ میں تصنیفی تربیت کا کورس کیا تھا _ میرے دہلی منتقل ہونے کے بعد اس تعلق میں مزید اضافہ ہوا _ انھوں نے خواہش کی کہ میں نکاح پڑھانے کے ساتھ مختصر تقریر بھی کروں _
میں نے اپنی تقریر میں عرض کیا کہ مختلف متمدّن سماجوں میں خاندان کی تشکیل نکاح کے ذریعے ہوتی ہے ، لیکن افسوس کہ ان میں نکاح کے ساتھ خطیر مصارف وابستہ کردیے گئے ہیں _ کسی شخص کی دو تین لڑکیاں ہوں تو ان کی پیدائش کے وقت سے وہ ان کے نکاح کے وقت کے لیے پیسے بٹورنے کی فکر میں لگا رہتا ہے _ افسوس کہ اس دوڑ میں مسلمان بھی پیچھے نہیں ہیں _ اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ و سلم کا تو ایک وصف قرآن مجید میں یہ بیان کیا گیا ہے : " وہ لوگوں سے وہ بوجھ اتارتا ہے جو انھوں نے خود پر لاد لیے تھے اور وہ بیڑیاں اور طوق کاٹتا ہے جن میں انھوں نے خود کو جکڑ لیا تھا _"
(الاعراف :157) لیکن افسوس کہ آپ کی امت نے اپنی مرضی سے دوبارہ خود کو رسوم و روایات کی بیڑیوں میں جکڑ لیا ہے اور بھاری بوجھ اپنے اوپر لاد لیے ہیں _ خاص طور سے نکاح کے موقع پر منگنی ، جہیز ، تلک اور دیگر ناموں سے مُسرفانہ رسوم کی سختی سے پابندی کی جاتی ہے _
میں نے عرض کیا کہ اسلام نے نکاح کا حکم دیا ہے اور سادہ انداز میں اس کے انعقاد کی تاکید کی ہے _ اللہ تعالیٰ کا ارشاد ہے : " تم میں جو بغیر جوڑے والے ہوں ان کے نکاح کراؤ _" ( النور : 32) اور اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ و سلم کا ارشاد ہے : " بہترین نکاح وہ ہے جو سہولت سے انجام پاجائے _" (صحیح ابن حبان : 4072) عہد نبوی میں اس کی بہت سی روشن مثالیں ملتی ہیں کہ غریب سے غریب لڑکے یا لڑکی کا نکاح بہت آسانی سے ہوگیا _ عورت چاہے مطلّقہ ہو یا بیوہ ، بہت آسانی سے اس کا نکاح ہوجاتا تھا _ ایک مثال بھی ایسی نہیں ملتی کہ کسی نوجوان یا دوشیزہ یا ادھیڑ عمر کے مرد یا عورت نے نکاح کا ارادہ کیا ہو اور مصارف فراہم نہ ہونے کی وجہ سے اس کا نکاح نہ ہوپایا ہو _
میں نے عرض کیا کہ اصلاحِ معاشرہ اور نکاح آسان بنانے کے موضوع پر تقریریں ہوتی رہتی ہیں ، لیکن عمل کا جذبہ مفقود ہوتا ہے _ جو لوگ تقریریں کرتے ہیں اور دوسروں کو آسان نکاح پر ابھارتے ہیں ، وہ خود اپنے بیٹے یا بیٹی کے نکاح کے موقع پر مُسرفانہ رسوم سے باز نہیں آتے _ آج ضرورت اس بات کی ہے کہ آسان نکاح کے عملی نمونے زیادہ سے زیادہ پیش کیے جائیں ، تاکہ عام لوگوں میں ان کی نقل کرنے کا جذبہ پیدا ہو اور مسلم سماج کو بے جا اور غیر شرعی روایات کی بیڑیوں سے نجات ملے _
نکاح کے بعد لڑکے کے ماموں سے تعارف ہوا _ انھوں نے ازخود بتایا کہ ہم نے ارادہ کیا تھا کہ اس نکاح میں ہم لڑکی والوں کا ایک پیسہ بھی خرچ نہیں ہونے دیں گے _

Friday 31 July 2020

Khutba Hajjatul Wida

मैदान अर्फ़ात में अल्लाह तआला के आख़िरी नबी, नबी रहमत सय्यदना मुहम्मद रसूल अल्लाहﷺ ने9 ज़ीलहिजा ,10 हिज्री को आख़िरी ख़ुतबा हज दिया था आईए इस ख़ुत्बे के अहम निकात को दोहरा लें, क्योंकि हमारे नबीﷺ ने कहा था, मेरी इन बातों को दूसरों तक पहुंचाएं हज़रत मुहम्मद रसूल अल्लाहﷺ ने फ़रमाया।




1- ए लोगो सुनो, मुझे नहीं लगता कि अगले साल में तुम्हारे दरमयान मौजूद हूँ गा मेरी बातों को बहुत ग़ौर से सुनो, और उनको उन लोगों तक पहुँचाओ जो यहां नहीं पहुंच सके
2- ए लोगो जिस तरह ये आज का दिन, ये महीना और ये जगह इज़्ज़त-ओ-हुर्मत वाले हैं बिलकुल इसी तरह दूसरे मुस्लमानों की ज़िंदगी, इज़्ज़त और माल हुर्मत वाले हैं (तुम उस को छेड़ नहीं सकते )
3- लोगो के माल और अमानतें उनको वापिस करो
4- किसी को तंग न करो, किसी का नुक़्सान न करो ताकि तुम भी महफ़ूज़ रहो
5- याद रखो, तुमको अल्लाह से मिलना है, और अल्लाह तुमसे तुम्हारे आमाल की बाबत सवाल करेगा
6- अल्लाह ने सूद को ख़त्म कर दिया, इसलिए आज से सारा सूद ख़त्म कर दो (माफ़ करदो )
7- तुम औरतों पर हक़ रखते हो, और वो तुम पर हक़ रखती हैं जब वो अपने हुक़ूक़ पूरे कर रही हैं तुम उनकी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करो
8- औरतों के बारे में नरमी का रवैय्या क़ायम रखो , क्योंकि वो तुम्हारी शराकतदार (पार्टनर) बेलौस ख़िदमत गुज़ार रहती हैं
9- कभी ज़ना के क़रीब भी मत जाना
10 ए लोगो मेरी बात ग़ौर से सुनो, सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो, पाँच फ़र्ज़ नमाज़ें पूरी रखो , रमज़ान के रोज़े रखो , और ज़कात अदा करते रहो अगर इस्तिताअत हो तो हज करो
11 ज़बान की बुनियाद पर रंग नसल की बुनियाद पर , हसब-ओ-नसब की बुनियाद पर तास्सुब में मत पड़ जाना काले को गोरे पर और गोरे को काले पर अरबी को अजमी पर और अजमी को अरबी पर कोई फ़ौक़ियत हासिल नहीं हर मुस्लमान दूसरे मुस्लमान का भाई है। तुम सब अल्लाह की नज़र में बराबर हो बरतरी सिर्फ़ तक़्वे की वजह से है
12 याद रखो तुम एक दिन अल्लाह के सामने अपने आमाल की जवाबदेही के लिए हाज़िर होना है, ख़बरदार रहो मेरे बाद गुमराह ना हो जाना
13 याद रखना मेरे बाद कोई नबी नहीं आने वाला , ना कोई नया दीन लाया जाएगा मेरी बातें अच्छी तरह से समझ लो
14 मैं तुम्हारे लिए दो चीज़ें छोड़ के जा रहा हूँ, क़ुरआन और मेरी सुन्नत, अगर तुमने उनकी पैरवी की तो कभी गुमराह नहीं होगे
15 सुनो तुम लोग जो मौजूद हो, इस बात को अगले लोगों तक पहुंचाना और वो फिर अगले लोगों को पहुंचाएं और ये मुम्किन है कि बाद वाले मेरी बात को पहले वालों से ज़्यादा बेहतर समझ और अमल कर सकें
फिर आपने आसमान की तरफ़ चेहरा उठाया और कहा
ऐ अल्लाह गवाह रहना, मैंने तेरा पैग़ाम तेरे लोगों तक पहुंचा दिया
या अल्लाह हम सबको इस पर अमल करने वाला बना दे। आमीन

Friday 10 July 2020

COVID-19 और मुस्लिम समाज

एक वाइरस (जो हमे नज़र भी नहीं आती) इंसानों को घर के अंदर कैद होने पर मजबूर कर दिया है। जानते हैं ऐसा क्यों है? क्यौकि इंसान इसके भयानक मंजर को अपने आँखों के सामने देख रहा है। ये वह वाइरस है जो इंसानों को तबाह कर रहा है इस जैसे कितने ही वाइरस हमारे दिलो दिमाग़ में रचे बसे हैं जो इंसानों को तो नहीं बल्कि उनके अन्दार के इंसानियत (अख़्लाक़) को खोखला करते जा रहा है लेकिन हमें इसका एहसास तक नहीं होता, जानते हैं क्यौं? क्योंकि इसका परिणाम करोना जैसे महामारी की तरह फौरन नहीं आता है लेकिन है यह उससे ज्यादा घातक है, क्योंकि यह इंसानियत को धीरे-धीर अंदर से खोखला कर देता है।
आप समझ गये होंगे मै किस वाइरस की बात कर रहा हूँ! जी हाँ, ये वह कोरोना है जो हमारे अंदर बुग्ज़, हसद, कीना, घमण्ड, चुगुलखोरी, एक-दूसरे पर लान-तान, आपसी सहयोग से बेपरवाह, भाई-भाई में नाइत्तेफाक़ी हमारे अंदर इस तरह से समा गया है कि वह बड़े-बड़े से आजमाइश आने के बावजूद हमारे दिला नहीं बदलते। कुरान में कहा गया है ‘‘तुम्हारे दिल सख़्त हो गये पस वे पत्थर की तरह हो गये या उससे भी ज्यादा सख़्त, पत्थरों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिनसे नहरें फूट निकती हैं, कुछ पत्थर फट जाते हैं और उनसे पानी निकल आता है और कुछ पत्थर ऐसे भी होते हैं जो अल्लाह के डर से गिर पड़ते हैं (कुरआन 274) आह! हमें क्या हो गया? हमारे दिल अभी तक क्यों नहीं लरज़ गये? और अगर हमारे इतने बेअसर हो चुकें हैं तो हम एक दिल के लिये दुआ क्यों नहीं करते जो हमें बदल दे। हमें इस तेज रफतार से चलती हुइ जिंदगी में ब्रेक लगाकर सोचना चाहिए कि हम किधर जा रहे हैं।
इस वबा नें लोगों को बिल्कुल फ्रि कर दिया है लोग यह कह रहे हैं अब क्या करें उन्हें कुछ समझ नहीं आता। लेकिन इसी में अल्लाह के कुछ नेक बंदे भी हैं जो अपनी जान और माल के साथ इस मैदान कूद चुके है। उनलोगों पर अल्लाह की रहमतें नाज़िल हों, वह एक दूसरे की मदद कर रहे हैं जाहिर सी बात है जब इंसान खुशहाली में अल्लाह को याद करता है, उसके बताये हुए तरीके पर चलता है और लोंगों की खिदमत अंजाम देता है, नेक़ी की तरफ बुलाता है और बुराई से रोकता है तो ऐसे वक्त में भी अल्लाह ताला अपने उन्हीं बंदों से काम लेता है और उनके दरजों को और ज्यादा बुलन्द कर देता है।
जो लोग यह कह रहे हैं हम क्या करें? कुछ काम नहीं है बैठे-बैठे ऊब जाते हैं मैं उन से कहना चाहता हूँ। कुरान रमज़ान के महीने में नाजिल हुआ है और हम अब इस मुक़द्दस महीने में दाखिल होने ही वाले हैं तो सबसे पहले हमें अपना एहतेसाब करना चाहिए।
ऐहतेसाब कैसे करेंः- हमने अब तक जो ज़िन्दगी़ गुज़ारी है उसमें कितना नमाज़ और रोज़े छोड़े हैं, कितने लोगों की हक़तल्फी हुई है, किनसे हमारा अनबन है, गुस्सा, घमण्ड, ऐब निकालना, झूठ बोलना वगैरह अपने तमाम कोताहियों का लिस्ट बना लेना चाहिये।
प्लानः- जब हमें अपने कोताहियों के बारे में जान लें तो उसके बाद प्लान करें कि यह हमारे अंदर से कैसे दूर होगा। इसके लिए सबसे पहले हमें कुरआन को समझ कर पढ़ने की जरूरत है हम कुरआन को उसके तरजूमें के साथ पढ़ें रोजाना एक पारा ताकि रमज़ान तक तरजुमा कुरआन मुकम्मल हो सके। जरूरी नही कि हम अकेले पढ़ें बल्कि एक आदमी पढ़े और घर के तमाम अफराद सुनें और जो बातें समझ में न आये उसे आलिम से पूछ लिया जाये। अब कुरआन का इल्म आजाने के बाद उसीके मुताबिक अपनी बाक़ी जिन्दग़ी गुज़ारें।
दुआः अखिर में अल्लाह तआला से रातों में खूब दुआ करें और अपनी गलतियों पर नादिम हों, अगर किसी की हक़तलफी हुई है तो उसे अदा करें, यही तौबा का तरीका़ है वरना आप कितना भी ज़िक्र व अज़कार करें तौबा कुबूल नहीं होता!
अगर हम ऐसा करने में क़ामयाब हो गये तो यक़ीन जानिये अल्लाह ताला की मदद हमारे साथ होगी और अगर हम इसके लिये तैयार नहीं हैं तो आगे इससे भी बड़ी आजमाइश के लिये तैयार रहें।
आखिर में एक सामाजिक मसले पर कुछ बात कहना चाहता हूं। हम जानते हैं कि इस्लाम में निक़ाह बहुत आसान है लेकिन आज के वक़्त में अगर माँ-बाप के लिये जो मुश्किल घड़ी है तो वह है बच्चों के शादी!
जानते हैं ऐसा क्यों? क्यौंकि की हमने अल्लाह तआला के किताब से अपना रूख मोड़ लिया है, किताब के कुछ हिस्सों पर ईमान लाते हैं कुछ को छोड़ देते हैं। आप गौर कीजिए आज जो सूरतेहाल है शादी-ब्याह के मामले में दीन को तर्क करने की वजह से, क्या शरीअत के मुताबिक निक़ाह करने से भी यही सूरतेहाल होता? क्या इसी तरह से बिन ब्याही बहने और बेटियां अपने घरों में माँ-बाप पर बोझ बनी रहती? यह बेटियां तो रहमत हैं फिर बोझ क्यौं? क्योंकि हमने कुरआन के कुछ हिस्से पर अमल करते हैं और कुछ हिस्से को छोड़ देते हैं।
आखि़र में, मैं बस यही कहना चाहता हुं की इस फुर्सत की घड़ी में हमारे सामने वह बरकत व रहमत वाला रमजान का महीना आने वाला है आप एक बार कुरआन को इस जज़्बे से पढ़ें कि हमें इस पर अमल करना है अभी हम इस लिए भी पूरे के पूरे दीन में दाखि़ल नहीं हो पाते क्योंकि हमने अभी तक कुरआन को समझने की गरज से पढ़ा ही नहीं है।

अल्लाह ताआला से दुआ है कि जो बातें लिखी गई हैं उसपर हमें और आपको भी अमल की तौफीक़ अता फरमाये। और हम सबके गलतियों को माफ फरमाये।


Online Marriage service based on TAQWA

Taqwa Marriage is a Muslim Matrimonial website with a difference! It facilitates matrimonial relations based on Islamic principles only. We envision a society where Quran and Sunnah form the basis of our decision-making in marriages, be it for ourselves or for our loved ones.  

Taqwa Marriage believes:

  1. That there is a large section amongst the Muslims saddened by the utter disregard of Islamic principles in marriages.
  2. That a large section wants to adhere to what Allah and His Prophet (saw) has ordered.
  3. That with concerted efforts, a positive change can be effected.For this,

Taqwa Marriage seeks to

  1. Establish a database of prospective grooms and brides searching for partners.
  2. Educate people on the teachings of Islam on marriage.
  3. Encourage people to give up un-Islamic customs and traditions that have crept into the pious institution of marriage.

Taqwamarriage.com Services:

  1. Search Online profile
  2. Support for match selection
  3. Support to families for meeting
  4. Marriage Registration
  5. Marriage Certificate
  6. Family Legal consultancy
  7. Marriage consultancy related deen
  8. Membership:
    1. Free
    2. 1 Yr subscription
    3. Premium
    4. Support available 6 days X 8 hrs

Current options

  1. Online and Offline
  2. Online by website and Android App / WhatsAPP(8860315143)
  • Brochure and Video 
  1. Video : https://www.youtube.com/watch?v=2LU4Q-GGK9c&feature=emb_title
  2. Download : Click Here
  3. Numbers
    1. Total Registration: Call us for details
    2. Active Registration: Call us for details
    3. Male and Female Ratio: 47% Male / 50% Female
    4. Unmarried: Male 38% / Female 44%
    5. Widow: 10%
    6. Divorce: Male ~ 10% and Female 10%
    7. Total Marriage: Call us for details
    8. Free Registration: 80%
    9. Profile type: Student, Doctor, Nurse, Teacher, CA, Govt Job, Home Maker, Engineer, Business and many others
    10. States: Delhi, U.P, Rajasthan, MPm Bihar, Jharkhand, WB, Maharashtra, AP, Telangana, Karnataka, Tamilnadu, Kerala etc

Success Story

  One more marriage is added in our success story